Wednesday 30 December 2015

जिस देश में सामाजिक या राजनैतिक अस्थिरता होती है उसमें लोग दूर की योजना बनाना छोड़ देते हैं। आज हम जिन परिवारों को घराना कहते हैं उनमें एक साथ कई पीढ़ियाँ बैठकर प्लानिंग करतीं थीं। वे दूर की सोच लेकर चलते थे.... जबकि अनिश्चितता के माहौल में लोग अधिक से अधिक पैसा जमा कर लेना चाहते हैं। हमेशा भयभीत रहते हैं कि जाने कल क्या हो...।लोग सोचते हैं कि अगर उनकी जेब भरी हो तो वह अनिश्चितता को झेल पाएँगे।किसी भी कँपनी या देश को भी गर्त में ढकेलने का सुनिश्चित तरीका है अल्पकालिक सोच रखना...। अल्पकालिक फायदे के लिये हम दीर्घकालिक नुकसान उठाने को आतुर हैं। बड़े आदमियों के सपने होते हों या नहीं, पर सपने देखे बिना कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता। इतिहास गवाह है। यह बात हर दौर और व्यवस्था पर लागू होती है। हमारे पास शानदार स्वप्नदृष्टाओँ जैसे चाणक्य, विवेकानंद, महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री की बेहद समृद्ध विरासत भले हो पर आज हम सपने नहीं देख रहे हैं। हर आदमी सपनों को दबा रहा है। सब अपनी आजीविका कमाने तक सिमट गए हैं। देश से जैसे कोई लगाव नहीं रहा गया है। गरीबी हटाने का मसला हो या गँदगी को मिटाने का, नारों-मुहावरों के आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। युवा जीविका के पीछे हो लिये हैं, ज्ञान पीछे छूट गया है। पैसा कमाना भी उद्देश्य नहीं रहा गया है, अब तो बात पैसे बनाने पर आ गई है। पैसा कमाने और पैसा बनाने में बहुत अंतर होता है।अपने आसपास जब हभ चोर-उचक्कों और बदमाशों को बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमते देखते हैं तो हमारे मन में भी ऎसे ही शार्टकट अपनाने की बात आती है। जो बुनियादी ताकत थी ईमानदारी की लोग उसे भूल रहे हैं। सँस्कारों की तो बात ही क्या, परिवार टूट रहे हैं, सब अपने पाँवों पर खड़े हैं तो कोई किसी की नसीहत क्यों सुने। तलाक और अलगाव बहुतायत में हो रहे हैं। और इस बिखराव से और असुरक्षा हो रही है, और टकराव हो रहे हैं..... कुल मिलाकर एक विशियस सर्कल बनता जा रहा है। रोल माडल जो कभी राजनीति, समाजसेवा, शिक्षा के क्षेत्र से आते थे, आज नगण्य हो चुके हैं। अन्ना कुछ को धूर्त लगते हैं, मोदी अन्य को मायावी, अरविन्द कुछ को महत्व के भूखे दीखते हैं, राहुल बहुतों को मूर्ख और अज्ञानी..... शिक्षक भी खानापूर्ति करते हुए बताए जाते हैं, माता-पिता ( मैं खुद ७ वर्ष के बालक और ३ वर्ष की कन्या का पिता हूँ) भी प्रतिस्पर्धा की लड़ाई में सँलग्न हैं। ऎसे में रोल माडल मिले तो मिले कहाँ? सभी जगह अनिश्चितता है और रास्ता किसी को सूझ नहीँ रहा, या यूँ कहें रास्ते का किसी को भान ही नहीं, अफीमचियों की भाँति.....।

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